डॉ० बाबा साहेब अम्बेडकर और ब्राह्मण......
बहुत समय से दलित समाज में क्रांतिकारी नेताओं के विषय में एक नवीन एवं महत्वपूर्ण मापदंड दिखाई दे रहा है। ऐसे वक्ता-नेता जो दलित समाज की सभाओं में ब्राह्मणों की जमकर बुराई करे, हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाये, साथ ही गांधी जी के विरुद्ध अपमानजनक भाषण करे, वे महान क्रांतिकारी एवं प्रगतिशील माने जाते है। उन्हें तालियों की गड़गड़ाहट से नवाजा जाता है। यह सब होता है - पूज्य बोधिसत्व डा० बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम पर। कितने ही लोगों ने बाबा साहेब जैसे देशभक्त की आड़ लेकर 'दलित स्तान' तक की घोषणा करने की धृष्टता की है। आइये, हम सब बाबा साहेब के जीवन की अनेक सच्चाइयों को जानें और उस पर गम्भीरता से विचार करें।
बरसात में भीगे हुए छोटे से भीम को अपना ब्राह्मणत्व भूल अपने घर ले जा कर पत्नी के हाथों गरम पानी से अपने ब्राह्मण पुत्र के साथ स्नान करवाने वाले अपने शिक्षक पेंडशे गुरुजी को याद करते हुए बाबा साहब अपने 50 वें जन्मदिन पर बोले ''.........
पाठशाला जीवन का वह मेरा पहला सुख था !''
बालक भीमा का कुलनाम आंबाव डेकर था जो कि अपेक्षाकृत बड़ा एवं कठिन होने के कारण अनके ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा जी केशव अम्बेडकर को अखरता था। उन्होंने बालक भीम से कहा कि इतने कठिन और अटपटे कुलनाम के स्थान पर मेरा कुलनाम अम्बेडकर अपना लो - और गुरु जी ने पाठशाला के केटलाग - रजिस्टर सहित सभी स्थानों पर भीमा का कुलनाम अम्बेडकर लिख दिया । आज यह ब्राह्मण कुलनाम करोडों नागरिकों के लिये आदर्श है।
आर्मी कैम्प स्कूल सताता में जाति भेद-भाव न के बराबर था। वहीं पर कृष्णाजी केशव अम्बेडकर (१८५५-१९३४) शिक्षक थे (उनके पिता केशव अम्बेडकर स्थानीय शिव मंदिर में पुजारी थे) Iश्री कृष्णाजी अपने सभी शिष्यों के प्रति समभाव रखते थे। पाठशाला में मध्याह्न अवकाश के समय जब भीमा अपने घर भोजन के लिए जाता और देर से लौटता तो गुरु जी को बुरा लगता था। इसलिए गुरुजी अपने टिफिन में थोड़ी आधिक सब्जी और रोटी लाते तथा बड़े प्यार से अपने हाथों से भीमा को देते।
डॉ० अम्बेडकर को इस सब्जी व रोटी की मिठास जीवन भर याद रही। अपने ६०वें जन्मदिन पर आयोजित नरे पार्क (मुम्बई) की विशाल जनसभा में इस गौरवपूर्ण प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, "....... विद्यालय जीवन की मेरी यह दूसरी मीठी याद है I" उन्होंने बताया कि १९३० की गोलमेज परिषद कार्य के लिये चुने जाने पर गुरूजी ने जो अभिनंदन पत्र उन्हें भेजा था, उसे आज तक उन्होंने संभालकर रखा है। जब गुरुजी अपने शिष्य से राजगृह (दादर) मिलने पहुँचे तो शिष्य अम्बेडकर ने अपने ब्राह्मण गुरु को दंडवत प्रणाम कर श्रीफल, धोती, चादर एवं सवा रुपया अर्पित कर सम्मानित किया। दिनांक २२-१२-१९३४ को गुरुजी का देहावसान हुआ जिसे जानकर अम्बेडकर को अपार दुःख पहुँचा।
भारतीय मजदूर सभा के जनक (मराठी साहित्यकार वा० मृ० जोशी के बड़े भाई) ब्राह्मण नारायण मल्हावराय जोशी १९० २-१९०६ में मुम्बई की एलफिस्टन हाईस्कूल में अम्बेडकर के कक्षा चार्य (क्लास टीचर)थे। उन्होंने छात्र अम्बेडकर को कक्षा की अंतिम पक्ति से उठाकर प्रथम पंक्ति में बैठाया और उनसे गणित का सवाल ब्लैकबोर्ड पर हल करवाया । आगे चलकर गोलमेज सभा में अम्बेडकर ने भारतीय मजदूरों का प्रतिनिधित्व किया।
मैट्रिक से आगे अध्ययन के लिए बड़ौदा नरेश सयाजीराव की छात्रवृत्ति पाने हेतु बम्बई में अम्बेडकर की महाराज से मुलाकात करवाने वाले यान्दे भी ब्राह्मण ही थे। गिरगाँव में उनका 'निर्णय सागर' नामक एक प्रेस था। बड़ौदा राज्य का सम्पूर्ण साहित्य-गजेट आदि वहीं छपता था। इसी कारण वह महाराजा गायकवाड के घनिष्ट सम्पर्क में थे। दादा केलुस्कर ( भंडारी जाति) उनके साथ गए थे। बाबा साहेब की महाराजा से जान-पहचान यान्दे जी ने ही करवाई थी। विदेश में उच्च अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति एवं आर्थिक सहायता के लिये दिनांक ४-७-१९१३ को बड़ौदा राज्य एवं भीमराव अम्बेडकर के मध्य अनुबंध-पत्र दाखिल किया गया जिसके लेखक एवं अम्बेडकर की तरफ से जिम्मेदारी लेने वाले त्रिभुवन जे. व्यास एवं ए. जी.जोशी ब्राह्मण ही थे।
बहिष्कृत हितकारिणी सभा (१९२४) के अध्यक्ष चीमन लाल सेतलवाड ब्राह्मण थे। महाड़ सत्याग्रह (कोलाब जिला बहिष्कृत परिषद दिनांक १९-२० मार्च १९२७) में कार्यक्रम के अंत में डॉ० अम्बेडकर के नेतृत्व में जुलूस निकालकर 'चवदार' तालाब में प्रवेश करके पानी पीने का प्रस्ताव रखने वाले अनंतराव विनायक चित्रे (१८९४-१९५९) कायस्थ थे जिन्होंने आगे चलकर अम्बेडकर के 'जनता' साप्ताहिक के सम्पादक के रूप में वर्षों तक अपनी सेवाएं दी। चित्रे जी ने १९२८ में इंदौर में दलित विद्यार्थियों के लिये छात्रावास भी खोला।
महाड़ सत्याग्रह के अनुक्रम में ब्राह्मण गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे ने मनुस्मृति दहन का प्रस्ताव रखा और दिनांक २५.१२.१९२७ को सायं ७ से ९ बजे तक दलित साधुओं के साथ मनुस्मृति की होली जलाई। आगे चलकर वह भी 'जनता ' के सम्पादक पद पर वर्षों तक रहे। सार्वजनिक स्थानों पर दलितों के प्रवेश का प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले सीताराम केशव बोले भी भंडारी (१८६९-१९६१) थे।
समता संघ की पत्रिका 'समता' के सम्पादक देवराम विष्णु नाइक गोवर्धन ब्राह्मण थे जो आगे चलकर 'जनता ' साप्ताहिक के संपादक बने। आप बाबा साहब के विश्वास पात्र साथी थे।
महाड़ सत्याग्रह केस (२० मार्च १९२७) दीवानी मुकदमा ४०५/१९२७ में शंकराचार्य डा० कृतकोटि ने डा० अम्बेडकर के पक्ष में गवाही दी। इस गवही को नोट करने वाले कोर्ट कमीशन भाई साहब मेहता ब्राह्मण थे। इस मुकदमें का न्याय निर्णय डा० अम्बेडकर के पक्ष में हुआ और यह निर्णय देने वाले न्यायमूर्ति वि.वि. पंडित भी ब्राह्मण थे। १० वर्ष पश्चात् १७-३-१९३७ को हाईकोर्ट ने डा० अम्बेडकर के पक्ष में अपना निर्णय दिया था।
महाड़ चवदार तालाब सत्याग्रह (२० मार्च १९२७) सफल हुआ। इससे आहत रुढ़िवादी सवर्णो ने दलितों पर हमला कर दिया। कई लोग घायल हुए। डा० अम्बेडकर ने फौजदारी शिकायत दर्ज करवाई। दिनांक २१.७.१९२७ को न्यायमूर्ति हुड साहब ने अपराधियों को सजा सुनाई। इस निर्णय से उत्साहित होकर डा० अम्बेडकर ने अपने पत्र 'बहिष्कृत भारत ' में दिनांक २५, २६ दिसम्बर के लिये अगले कार्यक्रम की घोषणा कर दी। लेकिन रुढ़िवादी सवर्णो ने दिनांक १२.१२.१९१७ को महाड़ सेशन जज की कोर्ट में मुकदमा नं०४०५/१९२७ दाखिल करके एक पक्षीय मनाही हुक्म प्राप्त कर लिया।
इस बीच दिनांक ९-१० दिसम्बर,१९२७ को 'वृहद महाराष्ट्र परिषद ' की एक बैठक वेदशास्त्र पारंगत नारायण शास्त्री मारेठी की अध्यक्षता में अकोला में सम्पन्न हुई जिसमें सैकड़ों वेद शास्त्र पारंगत ब्राह्मणों ने भाग लिया। इस ब्राह्मण परिषद ने सर्वानुमत से १० प्रस्ताव पारित करके सामाजिक समरसता की जोरदार वकालत की। इसके अतिरिक्त प्रस्ताव १३ पारित करके यह घोषणा की कि 'अस्पृश्यता शास्त्र आधारित नहीं है और मानव मात्र को वेद अध्ययन का अधिकार है ' । साथ ही पाठशाला, धर्मशाला, मंदिर, बावड़ी, कुँआ, तालाब आदि स्थानों पर सभी को प्रवेश करने का अधिकार है। किसी को अस्पृश्य नही मानना चाहिये।
इस परिषद के मुख्य संचालकों में पांडुरंग भास्कर शास्त्री पालेय (ब्राह्मण ) थे। डा० अम्बेडकर को जो अपेक्षायें थीं वह इस परिषद ने प्रस्ताव द्वारा पारित की। महाड़ के रूढ़िवादी सवर्णों के मुकदमें के प्रत्युत्तर में डा० अम्बेडकर ने पांडुरंग भास्कर शास्त्री पालेय द्वारा पुस्तक में से उद्धृत श्लोकों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया। इसमें स्पष्ट किया गया था कि अस्पृश्य के स्पर्श से पानी या कोई भी वस्तु अपवित्र नहीं हो जाती। शास्त्री जी (पालेय) ने स्मृतियों के आधार पर सभी साक्ष्य जमा किये थे। परिणामस्वरूप मुकदमा करने वाले मुख्य वादी पांडुरंग रघुनाथ धारप की हताशा से मृत्यु हो गई। अन्य आठ रुढ़िवादी सवर्ण दूसरी सुनवाई पर उपस्थित नहीं हुए। अंत में निचली अदालत ने मुकदमा खारिज कर दिया।
'समता संघ' के प्रमुख कार्यकर्ता कमलकांत वासुदेव चित्रे (१८९४-१९४७) सिद्धार्थ कालेज की स्थापना एवं विकाश कार्यो में बाबा साहब के सहयोगी थे। वह पीपुल्स एजूकेशन सोसाइटी के गवर्निग बॉडी के सदस्य थे। डा० बाबा साहेब के पुनर्विवाह के अवसर पर दिल्ली में विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष डा० शारदा कबीर (वधु) के पक्ष में हस्ताक्षर करने वाले डा० शारदा के भाई बसंत कबीर एवं कमलकांत चित्रे ब्राह्मण थे।
'स्वतंत्र मजदूर पक्ष ' के महामंत्री बैरिस्टर समर्थ कायस्थ थे। वकालत के व्यवसाय में डा० बाबा साहब उन्हें अपने साथ रखते थे। वह 'म्युनिसिपल कामदार संघ ' के उपाध्यक्ष भी थे।
१९४५ में डा० अम्बेडकर को सर्वप्रथम सम्मान पत्र से सम्मानित करने वाले शोलापुर म्युनिसिपल के अध्यक्ष डा० वी. वी. मूले ब्राह्मण थे। सम्मान पत्र के प्रत्युत्तर में डा० अम्बेडकर ने कहा कि आज से २० वर्ष पूर्व डा० वी.वी. मूले के सहयोग से ही वह समाज सेवा के कार्य में सक्रियता से जुड़े।
स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में डा० अम्बेडकर को सम्मिलित करने के लिये आग्रह करने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य (रामजी) भी ब्राह्मण थे।
१९४८ में डा० अम्बेडकर ने शारदा कृष्ण राव कबीर नामक सारस्वत ब्राह्मण महिला के साथ पुनर्विवाह किया। महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार विवाह पश्चात डा० अम्बेडकर ने उनका सविता नामकरण किया। डा० अम्बेडकर ने दिनांक १.९.१९५७ को राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद के हाथों मिलिंद महाविद्यालय औरंगाबाद का शिलान्यास करवाया। डा० राजेन्द्र प्रसाद कायस्थ थे।
डा० अम्बेडकर ने १९५४ में भारतीय बौद्ध महासभा नामक संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया। इस बौद्ध संस्था में एक ट्रस्टी के रूप में बाल कृष्ण राव कबीर (डा० शारदा कबीर के भाई एवं बाबा साहेब के साले) को लिया गया जो कि सारस्वत ब्राह्मण थे। भारतीय बौद्ध महासभा का प्रथम नाम भारतीय बौद्ध जनसंघ (१९५१) था। तत्पश्चात भारतीय बौद्ध जन समिति (१९५३) और अंत में भारतीय बौद्ध महासभा रखा गया।
पूज्य बोधिसत्व डा० बाबा साहेब अम्बेडकर तथागत बुद्ध के शरण में गए...'बुद्धं शरणं गच्छामि.....।' तथागत बुद्ध पूर्व में सिद्धार्थ थे, जिनकी प्रारंभिक शिक्षा आठ ब्राह्मणों - कोंडम्य, राम, ध्वज, लक्ष्मण, सुयां, सुदत्र, भोज द्वारा सम्पन्न हुई। भगवान बुद्ध के प्रथम पाँच शिष्य पंचवर्गीय भिक्षु - कौंडिन्य, वम्प, महानाम, अश्वजित एवं भद्दीय भी ब्राह्मण ही थे। महाकारुणिक बुद्ध के भिक्षु संघ में ७५ प्रतिशत ब्राह्मण थे। उनके प्रमुख शिष्य धम्म सेनापति सारिकपुत्र (बुद्ध का दाहिना हाथ), महामोगल्लायन (बायाँ हाथ), कौंडिन्य (मेरुदण्ड), महाकाश्यम (बायाँ कान) भी ब्राह्मण ही थे।
बौद्ध धर्म का विदेशों में प्रचार करने वाले प्रमुख रुप से ब्राह्मण ही थे। अन्त में महात्मा बुद्ध की पवित्र अस्थियों के लिए जब आपस में कलह हुई, तब उसका समाधान करने वाला शिक्षक द्रोण ब्राह्मण ही था Iउन्होंने गौतम बुद्ध की पवित्र अस्थियाँ जिस पात्र में रखी गईं थी, वह मिट्टी का पात्र मांगा और कहा, 'मुझे यह खाली मटका दे दो, मैं उसके ऊपर कुंभ को स्तूप बनवाकर पूजा करुँगा।' थोड़ी देर से आने वाले पिप्पली वन के मौर्यों को बची हुई राख एवं कोयले को स्वीकार कर संतोष करना पड़ा था। इस प्रकार कलह के स्थान पर दस स्तूपों का सृजन उस ब्राह्मण द्रोण की दूरदृष्टि का परिणाम था।
दिनांक १४ अक्टूबर, १९५४ को विजया दशमी के दिन नागपुर में बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा स्वीकार करने वाले एडवोकेट अनंत रामचन्द्र कुलकर्णी (मंत्री, बौद्ध समिति) और नागपुर सेशन जज . न्यायमूर्ति भवानी शंकार नियोगी भी ब्राह्मण थे। कुलकर्णी १९४० से नागपुर में बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गठित नियोगी कमीशन रिपोर्ट में इस बौद्ध कार्यकर्ता ने ईसाई धर्मान्तरण के विरोध की सिफारिश की थी।
इस प्रकार समाज सेवा कार्य एवं संघर्ष में ब्राह्मणों ने डा० अम्बेडकर का पूरा साथ दिया था। इसे हम डा० बाबा साहेब अम्बेडकर एवं ब्राह्मणों के मध्य ऋणानुबंधी सम्बन्ध कहें अथवा मात्र संयोग....... किन्तु सत्य, हकीकत, वास्तविकता यही है।
(लेखक - धम्मबन्धु डॉ० पी. जी.ज्योतिकर, भारतीय बौद्ध महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है और डा० भीमराव अम्बेडकर पर लिखित शोध-प्रबन्ध पर उन्हें डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त है)
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