अपने ही शिष्य को नहीं हरा पाए थे परशुराम, ये हैं 11 रोचक बातें
Dainikbhaskar.com 28 Apr.2017 1:00
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 29 अप्रैल, शनिवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम का जन्म हुआ था। आज हम आपको भगवान परशुराम से संबंधित कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
भीष्म को नहीं कर सके पराजित
महाभारत के अनुसार, भीष्म परशुराम के ही शिष्य थे। एक बार भीष्म काशीराज की बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती है तब भीष्म ने उसे छोड़ दिया, लेकिन शाल्व ने अंबा को अस्वीकार कर दिया।
जब अंबा ने यह बात परशुराम को बताई तो उन्होंने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा। भीष्म के ऐसा न करने पर परशुराम और उनके बीच भीषण युद्ध हुआ। अंत में पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
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तस्वीरों का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
ऐसे हुआ परशुराम का जन्म
महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। एक बार महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि इसमें से एक विशेष फल तुम खा लेना और दूसरा तुम्हारी माता को खिला देना। भूल से दोनों के फल बदल गए। जब महर्षि भृगु को यह बात पता चली तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि- तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह व्यवहार करेगा।
तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से कहा कि- मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद सत्यवती ने जमदग्नि मुनि को जन्म दिया। इनका व्यवहार ऋषियों के समान था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्नि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। परशुराम का स्वभाव क्षत्रिय के समान था।
नहीं हुआ था श्रीराम से कोई विवाद
श्रीरामचरित मानस के अनुसार, श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। धनुष टूटने की आवाज सुनकर परशुराम भी वहां आ गए। शिव का धनुष टूटा हुआ देखकर वे बहुत गुस्सा हुए और वहां उनका श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद भी हुआ।
जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विवाह के बाद जब श्रीराम अयोध्या जा रहे थे। तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ा कर छोड़ दिया। यह देखकर परशुराम को भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया और वे वहां से चले गए।
क्यों किया माता का वध?
एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा चित्ररथ भी वहां स्नान कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार आ गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। रेणुका को देखकर मुनि जमदग्नि ने उनके मन की बात जान ली और अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु किसी ने ऐसा नहीं किया।
तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे ही अपने फरसे से माता का सिर काट डाला। ये देखकर मुनि जमदग्नि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं।
क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध?
एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमग्नि मुनि के आश्रम के पास से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।
इसलिए किया क्षत्रियों का संहार
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्नि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहिन कर दिया।
परशुराम का कर्ण को श्राप
कर्ण परशुराम का ही शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक ब्राह्मण पुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु नींद से उठ न जाएं, ये सोचकर कर्ण दर्द सहता रहा।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण ब्राह्मण पुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि- मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे। इस प्रकार परशुरामजी के श्राप के कारण ही कर्ण की मृत्यु हुई।
राम से कैसे बने परशुराम?
बचपन में परशुराम को उनके माता-पिता राम कहकर बुलाते थे। जब राम बड़े हुए तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगे। उस समय असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा।
राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।
फरसे से काट दिया था श्रीगणेश का एक दांत
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।
अमर हैं परशुराम
हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। इनमें से एक भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम भी हैं-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।
ये थे परशुराम के भाइयों के नाम
ऋषि जमदग्रि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु था।
किया था श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन
महाभारत के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।
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