Tuesday, May 30, 2017
Monday, May 22, 2017
भाग्य से ही मिलता है धन
भाग्य से ही मिलता है धन
News Track Live
एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है? नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंग। रदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है। उसकी जरुरतें एक रुपये में पूरी हो जाती थीं। एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूं।
आदमी ने कहा मेरी कमाई एक रुपये रोज है, इस बात का भी ध्यान रखना। इसी में से ही तुम्हारी बहन को गुजर बसर करना पड़ेगा। मित्र ने कहा, कोई बात नहीं उसे रिश्ता मंजूर है। अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई। उसने नारदमुनि से पूछा कि मुनिवर मेरे भाग्य में एक रुपया रोज लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है। नारदमुनि ने कहा: अब तुम्हारे साथ एक और सदस्य भी जुड़ गया है, जिससे तुमहारी शादी होने वाली है। ये दस रुपये उसके भाग्य से ही मिल रहे हैं।
इसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रुपये होने लगी। व्यक्ति ने फिर नारदमुनि को बुलाया और पूछा कि अचानक उसे 31 रुपये कैसे प्राप्त होने लगे। क्या व कोई अपराध कर रहा हूं। मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है। बताया कि हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है। किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है किसी को नहीं पता। हालांकि मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया, मैंने कमाया आदि। मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है। हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है।
Saturday, May 20, 2017
जिस घर की महिलाये नहीं भूलती करना ये काम वहां होती है धन की बरसात
जिस घर की महिलाये नहीं भूलती करना ये काम वहां होती है धन की बरसात
20 May. 2017
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“जिस घर की महिलाएं नहीं भूलती करना ये काम ,वहां धन के देवता कुबेर रहते हैं मेहरबान ”
घर परिवार पर किसी भी तरह की कोई आंच न आये इसके लिए हर ब्यक्ति भरपूर प्रयास करता है ,जीवन है तो समस्याए भी होंगी | दुःख है तो सुख भी होगा,सुख है तो दुःख भी आएगा ये जीवन का नियम है | इसके लिए कुछ ऐसे काम है जो घर की महिलाओ को रोज करने चाहिए जिससे धन के देवता कुबेर मेहरबान हो जायेंगे |
इस उपाय से आपको घर में किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा |इस उपाय से जीवन में कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा | तो चलिए जानते है उन कामो के बारे में —
१- घर के हर कोने में पचास ग्राम फिटकरी रखे ,इससे घर में किसी भी तरह का वास्तु दोष होगा वह समाप्त हो जायेगा|
२-पूरब और पश्चिम दिशा में सर रखकरने से बढती है उम्र और भरती है आपकी जेब इसलिए आपबी भी सोये तो पूरब या पश्चिम दिशा की तरफ सर रखकर ही सोयें |
३-झाड़ू या पोछा खुली जगह में नहीं रखना चाहिए ,रसोई में तो बिल्कुल भी न रखे |इनको हमेशा छुपाकर रखना चाहिए |क्योकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप मन जाता है |पोछा लगाते समय उसमे नमक जरुर डाले | ऐसा करने से आपके घर में नकारात्मक उर्जा रुक नहीं सकेगी और हमेशा सकारात्मक उर्जा ब्याप्त रहेगी |
४-आपके घर में कोई भी नल लीक न करता हो अर्ताथ आपके घर में पानी टपकता न हो |आग पर रखा दूध या चाय उबलना नहीं चाहिए इससे आमदनी से जादा खर्चा होने की सम्भावना होती है |इसीलिए इन सभी बातो का विशेष ध्यान रखे |
५-मानसिक परेशानी दूर करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करे प्रत्येक मंगलवार को या शनिवार को हनुमान जी का भोग लगाये | प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सर पर से कच्चा दूध ग्यारह बार उतार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम को पिला दे |इससे बच्चा दीर्गायु होगा ऐशी पुरातन मान्यता है |
६-किसी रोग से ग्रसित होने पर सोते समय अपना सर पूरब की ओर रखे ,अपने सोने के कमरे में एक कटोरी सेंधा नमक के टुकड़े रखे आपकी सेहत बहुत जल्दी ठीक होगी |
अगर आप के घर की महिलाएं ये काम नहीं करती तो उनको ये काम करने के लिए बोलियें जिससे आपको अपने घर में कभी भी आर्थिक तंगीआना न करना पड़े |
भूलकर भी दूध के साथ न करें इन चीजों का सेवन, हो सकते है नपुंसक
भूलकर भी दूध के साथ न करें इन चीजों का सेवन, हो सकते है नपुंसक
हेल्थ डेस्क: दूध हमारी सेहत के लिए अधिक लाभकारी है। इसको पीने से आप कई बीमारियों से बच सकते है। साथ ही यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह हमारे शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी तेज करता है।
हम सभी जानते हैं कि दूध पीने से सेहत में कितना निखार आता है लेकिन गर्म दूध पीने से हमें क्या लाभ पहुंचता है, ये बहुत कम लोगो को पता है। इसलिए दूध पीनी बहुत ही आवश्यक है। लेकिन कुछ ही लोगों को ये बात पता है कि दूध पीने का भी एक समय होता है। जिससे आपको पूरा फायदा मिले। इसी तरह हम दूध के साथ क्या चीज ले रहे है। इससे हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पडेगा।
इस संपूर्ण आहार के साथ कई ऐसी चीजें है। जिनका साथ में सेवन नहीं करना चाहिए। अगर आपने इनका साथ में सेवन किय तो यह जहर बन सकते है। इतना ही नहीं पुरुष तो इससे नपुंसक तक बन सकते हैं। जानिए किन चीजों का सेवन करना आपके लिए जहर बन सकता है।
दूध और मछली
मछली हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है, लेकिन इसे दूध के साथ लेने पर यह आपके लिए जहर बन सकता है। आयुर्वेद के अनुसार ये दोनों पदार्थ साथ में खाने से पेट में अम्ल पैदा करते हैं जिससे बदजहमी औऱ पेट में दर्द की समस्या होती है। यहां तक की आपके दिल को भी बीमार कर सकता है।
दूध और सॉल्ट
इन दोनों चीजों का कभी भी साथ में सेवन नहीं करना चाहिए। इनका इफेक्ट आपको एक दम से नहीं दिखेगा। धीरे-धीरे आपके शरीर में यह असर करेगा। जिसके कारण आपको सफेद रोग भी हो सकता है।
दूध के साथ खट्टे फल
दूध के साथ कभी भी खट्टे फल नहीं खाना चाहिए, नही तो यह आपके लिए जहर बन सकते है। कुछ विशेष माना जाता है कि ये सारे फल आपके पेट को ठंडा करते हैं जबकि दूध गर्म करता है। जिससे आप के शरीर पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। ये पेट में असंतुलन पैदा करते हैं जिससे पेट में ‘अमा’ या जहरीले पदार्थ बनते हैं। जो कि आपके लिए खतरनाक है।
दूध और मीट
यह दोनों ही संपूर्ण आहार होता है, लेकिन इनका सेवन साथ में नहीं करना चाहिए। क्योंकि दोनों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाएं जाते है। जिसे आपका शरीर पचा नहीं पाएंगा। जिससे शरीर को नुकसान पहुंचता है।
Sunday, May 7, 2017
🍸पानी के ज़रिये इलाज 🍸
🍸पानी के ज़रिये इलाज 🍸
प्राकृतिक पैथी के डॉक्टरों ने पानी के ज़रिये इन बीमारियों का इलाज किया है।
1 लकवा(Paralysis)
2 बेहोशी
3 ब्लड कोलेस्ट्रोल
4 सर का दर्द(headache)
5 ब्लड प्रेशर
6 बलग़म (phlegm)
7 खांसी(cough)
8 दमा (asthama)
9 टीबी (Tuberculosis)
10 मेनन जॉइंटिस ( JAUNDICE)
11 जिगर(Liver)की बीमारी
12 पेशाब की बीमारियाँ
13 तेज़बियत(acidity)
14 पेट की गैस
15 पेट में मरोड़ (colic)
16 क़बज़ ( Constipation)
17 डायबिटीज
18 बवासीर (Piles)
19 आँख की बीमारियाँ
20 हैज़ (औरतों के period आना)
21 बच्चे दानी (womb;uterus) का कैंसर
22 नाक व गले की बीमारियाँ
पानी पीने का तरीका
बिना मुंह धोए और बिना कुल्ली किए नहार मुहं 1250ml मतलब 4 बड़े गिलास पानी संभव हो तो जमीन पर पालथी में बैठकर एक साथ पी जाएँ।
अब 45 mint तक कुछ भी ना खाएं पीयें ।
अगर शुरू(starting)में 4 गिलास पानी नहीं पी सकते हैं तो 1 या 2 गिलास से शुरू करें। धीरे धीरे बढ़ा कर 4 गिलास कर दें। मरीज़ ठीक होने के लिए और जो मरीज़ ना हो वह fit रहने के लिए यह इलाज का तरीका अपनाये।
Doctors का कहना है कि इस इलाज(इस तरीके से पानी पीने)से निम्नलिखित बीमारियाँ बताये हुए दिनों में ठीक हो सकती हैं।
1 क़बज़ (मलावरोध Constipation) 2 दिन
2 गैस की बीमारियाँ 2 दिन
3 diabetes(शूगर)1 हफ्ता
4 उच्च रक्त चाप(high blood pressure) 1 महिना
5 कैंसर 1 महिना
टीबी(tuberculosis) 3 महिना
6 बड़े गिलास पानी एक साथ पीने से कोई नुक़सान(side effects) नहीं होता हाँ पेट ज़रूर भर जाता है। 45 mint के बाद भूख लग जाएग
🌴🌴 यह संदेश आप पढने के बाद आगे किसी को नहीं भेजेगें तो कोई नुक्सान नहीं होने वाला किंतु यदि आप आगे forward करते हैं तो हो सकता है कि किसी को लाभ मिल जाए l 🌴🌴
*डा० हिमांशु माली
योग चिकित्सक
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* ठण्डे पानी के साथ गोलियाँ न लेवें ।
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* सांय पाँच बजे के बाद भारी भोजन का सेवन न करें ।
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* हमेशा! सुबह ज़्यादा पानी पीयें, व रात के समय कम ।
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* सोने का सबसे अच्छा समय रात के दस बजे से सुबह चार बजे तक होता
है ।
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* दवाईयां खाना लेने के बाद तुरन्त न लेवें
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एक अच्छे संदेश से सभी को अवगत
करवाना हँसी मज़ाक़ के 100 संदेश भेजने से अच्छा है ।
🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛
यह सभी के लिये उपयोगी है।
🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛🥛
ज्ञान बडा महत्वपूर्ण है जितना
बाटोगे उतना बडेगा
👏👏👏👏👏कृपया अपने परिचितों ,दोस्तो ,रिस्तेदारों को अवश्य अवगत कराये ।
*तांदळाचा भात बनवतांना अन्न संस्कार महत्त्वाचा !*
*तांदळाचा भात बनवतांना अन्न संस्कार महत्त्वाचा !*
*अन्न हे पुर्णब्रम्ह*
अन्नावरचा भारतीय संस्कार
कुकरमधे भात बनवला, तर त्यात चिकटपणा तयार होतो. पाणी भातात मुरते.
जिथे पाणी मुरते तिथे गडबड असतेच ना !
तांदळाच्या दुप्पट पाणी घालून कुकरमधे २५० सेंटीग्रेडला १५ ते २० मिनिट शिजवला, तर त्यातील जीवनसत्वे जीवंत राहतील ?
एका बाजूने गॅस वाचेल, त्यापेक्षा अधिक रक्कम डॉक्टरांना कायमस्वरूपी द्यावी लागते !
अग्निसंस्कार चुकीचा झाला ना ! कसा ?
आपली भात करण्याची पारंपरिक पद्धत काय आहे ?
त्यातील तापमान अभ्यासूया. प्रथम तांदळाच्या १६ पट पाणी १०० सेंटीग्रेडला उकळवून घ्यावे. आधीच रोवळीमध्ये धुवून घेतलेले तांदुळ त्यात ओतावे.
उकळत्या पाण्यात ८ ते १० मिनिटे तांदुळ शिजवावा.
त्यानंतर एक शीत काढून तो आतपर्यंत शिजला आहे, हे पाहून अधिकचे पाणी काढण्यासाठी हा भात चाळणीवर ओतावा.
शिजलेले पाणी, म्हणजचे पेज काढून टाकावी आणि भात पुन्हा पातेल्यात ओतून केवळ ५० ते ६० सेंटीग्रेडला १० मिनिटे झाकण टाकून ठेवावा.
भात मस्त फुलतो.
*वेगळी केलेली पेज प्यायची हं.*
टाकायची नाही.
पोषक अंश (आजच्या भाषेत, कार्बोहायड्रेटस्) त्याच्यातच आहेत ना !
आता या पद्धतीच्या भातात, भात आणि पेज मिळून सगळी जीवनसत्वे शाबूत असतील ना !
अग्निचा संस्कार यथायोग्य झाल्याने आणि पाणी काढून टाकल्याने भात पचायला हलका आणि पेजही पचायला हलकी.
तांदळाच्या १६ पट पाणी,
८ पट पाणी,
४ पट पाणी आणि दुप्पट पाणी घालून केलेल्या भाताला अनुक्रमे मंड, पेया, विलेपी आणि ओदन अशी नावे आहेत.
म्हणजेच निवळ, पेज, आटवल आणि भात.
अशा पेज काढलेल्या भाताने पोट अजिबात सुटत नाही आणि क्लेद वाढवणारा चिकट भाग योग्य वेळी वेगळा केल्याने शरीरातील साखरही वाढत नाही.
कोकणात जेवणात भात अधिक प्रमाणात खातात; पण कोणाचे पोट सुटलेले बघितलेले नाही.
याउलट कुकरचा भात चालू केल्यापासून पोट सुटायला लागले आहेत आणि रक्तातील साखर देखील वाढायला लागली असल्याचे दिसू लागले आहे.
आता सांगा, कुकरच्या भातात आणि पेज काढून केलेल्या भातात भूमी-आकाशाएवढा भेद असेल कि नाही ?
हा आहे अन्नावरच्या अग्निचा भारतीय संस्कार.
भात खाणे वर्ज्य नाही , आपण
चुकीच्या पद्धतीने भात खातो,
म्हणून वजन वाढते..
ह्या भारतीय पद्धतीने भात बनवा..
जेवन बनवतांनाही मनात सात्विक भाव ठेवा.
ईश्वराचे स्मरण करा..
ज्यांच्या साठी अन्न शिजवताय., त्यांच्या विषयीचा प्रेमभाव जाग्रुत ठेवा .. हे प्रेमच अन्नाला रूची प्रदान करते..
सतत आदळआपट करणा-या, अपशब्द वापरणा-याच्या हातून तयार झालेले अन्न तामसिक बनते. व ते अन्न खाणारी व्यक्तीही तामसिक बनते...
मन शांत असेल तरच पदार्थात योग्य प्रमाणात अन्नपदार्थ टाकले जातात, अशांत मन असेल तर प्रमाण चुकते.. कधी मिठच पडत नाही , तर कधी दुप्पट पडते, मसाला डबल पडतो , तिखटाते प्रमाण बिघडते .. असो..
शांत रहा ..
आनंदी रहा..
मस्त रहा ..
प्रसन्न रहा ..
आणि जेवन बनवा..
बनवलेल्या अन्नाचा नैवेद्य प्रथम प्रभुला अर्पण करा..
आणि मग मनोमन त्या अन्नदात्याचे आभार मानून ईतरांना वाढा, स्वतःही खा..
हे केवळ उदरभरण नसून हा
कर्म यज्ञ आहे , जो परमेश्वाने तुमच्या हातून करविला आहे.
बनविणारा ही तोच आणि खाणाराही तोच..
*आपण निमित्तमात्र*
Wednesday, May 3, 2017
कथा
अगदी जड अंतःकरणाने अविनाशने कारच्या डिक्कीचा दरवाजा उघडला, आईची बॅग आत सरकवली, दरवाजा बंद केला, दरवाज्याच्या काचेवर ठळक "आईची पुण्याई" लिहलेल्या अक्षराकडे पाहून त्याचे डोळे पाणावले ! कारचा दरवाजा उघडला, आई आत बसली अन गाडी निघाली.
दोघेही शांत होते !
बाबा गेल्यावर सर्व घराची धुरा सांभाळत आईबाबा दोघांची जबाबदारी आपल्या सर्व आशा आकांक्षा बाजूला गुंडाळून आईने प्रचंड ताकतीने पेलवली होती! बाबानंतर बाबांच्या पेन्शनच्या पैशातून त्यांच्या स्वप्नातील त्यांचे घर चालवत एकुलत्या एक अविचे उच्चशिक्षण, एका नामांकित कंपनीत मोठ्या पॅकेज ची नौकरी, उच्चविद्याविभूषित संस्कारी घरातील मुलीशी विवाह, एक गोंडस आजीच्या छत्रछायेत वाढलेली संस्कारी कन्यारत्न अन गेल्या गुढीपाडव्याच्या दिवशी अविच्या स्वप्नातली त्याला घेऊन दिलेली ही कार ! सर्व अविच्या जमेची बाजू होती !
सातव्या महिन्यात जन्मलेली 'मनू' कदाचित वाचणार नाही असे डॉक्टरने सांगितल्यावर सर्व देव पाण्यात टाकून, बाबांचे वर्षश्राद्ध न करता सतत वीस दिवस आई दवाखान्यातून हलली सुद्धा नव्हती ! मनू आज दहा वर्षाची झाली तरी आईपेक्षा आजीच्या सानिध्यात राहूनच तिने 'उत्तम संस्कार' आत्मसात केले होते, त्याचा परिणाम पण असा होता की शाळेच्या पालक सभेत जाणे अन मनूची प्रशंसा ऐकून घरी परत येणे! याशिवाय अवि अन उच्चविद्याविभूषित पत्नी 'जयंती' कडे पर्याय नव्हता !
सर्वकाही ठीकठाक चालले होते !
आई आईचे सर्व काम स्वतःच करत होती ! आजपर्यंत आईने अविकडे एक रुपया देखील मागितला नव्हता !
नियमित चालणे, धार्मिक ग्रंथाचे वाचन, न चुकणारा हरिपाठ यामुळे तिला दवाखाना माहीत नव्हता !
पण सर्वच सुखात चालले तर दुःखाने कोणाच्या खांद्यावर डोके टेकायचे .........????
उच्चविद्याविभूषित संस्कारी घरातील सून आणण्याचा आईचा निर्णय कदाचित चुकला होता !
सुंदर, सालस, संस्कारी, गर्भश्रीमंत होती पण माणसाला माणूस अन प्राण्याला प्राणी समजण्याची कला तिला अवगत नव्हती !
छोट्या छोट्या गोष्टींमुळे, मैत्रिणींच्या सल्ल्यामुळे, माहेरच्या गुजगोष्टीमुळे तिने गेल्या तीन महिन्यापासून अविचे अक्षरशः डोके खाल्ले होते, अन गेल्या पंधरा दिवसापासून अविशी अबोला केला होता !
विपन्नावस्थेत असलेला अवि प्रचंड मानसिक दबावाखाली जगत होता, त्याच्या मनात अस्तित्व निर्माण करणारी जननी विरुद्ध जन्मजन्मांतरी साथ देणारी(?) पत्नी यांचे पारंपरिक युद्ध तो प्रत्यक्षात अनुभवत होता !
याचा पूर्णविराम त्याला हवा होता, आईला कळू न देता त्याने एका वृद्धाश्रमाची माहिती तो काढून आला होता !
अन आज आईने घेऊन दिलेल्या कारमध्ये तो आईला बसवून त्या वृद्धाश्रमात सोडण्यासाठी निघाला होता अन ते पण आईला याची पूर्वकल्पना न देता !! त्याच्यासाठी हा दैवदुर्विलास !!
गाडी गल्लीतून मुख्य रस्त्याला लागली, ताकतीने पळण्याची क्षमता असूनही गाडी फारच कमकुवत मनाचा चालक बसल्यामुळे अगदी चालकाच्या सोयीप्रमाणे चालत होती ! आईने पॉकेट ज्ञानेश्वरी काढली अन वाचत बसली !
आईने अविला एका शब्दाने विचारले नव्हते की तो तिला कुठे घेऊन जात आहे ! कदाचित तिला कळले तर नसेल ?? त्याच्या मनात एक संघर्ष पेटला होता, आयुष्य घडवणारी आई का आयुष्याच्या शेवटपर्यंत साथ देणारी पत्नी ?? पण आई माझ्या भावना समजावून घेईल अन माझ्या निर्णयाला नेहमीप्रमाणे समर्थन देईल या भावनेतून त्याने आईला न सांगता हे पाऊल उचलले होते ! पण आईला प्रत्यक्ष बोलण्याची हिम्मत त्याच्यात अजिबात नव्हती !!
काय सांगू ? कसे सांगू ? या विचारात गेल्या नव्वद दिवसापासून होता तो !!
एखाद्या मालिकेमध्ये एकाच भागात संपणारा विषय तीन महिने घोळावा अन त्यातून काहीतरी अनपेक्षित बाहेर यावे तसाच हा विषय होता !!
समोरील चौकातून गाडी डावीकडे वळली, महिन्याच्या वारीसाठी एकादशीला नाथमहाराजांच्या दर्शनाला जाणाऱ्या आईचा अगदी पाठ झालेला रस्ता असल्याने आईने त्या रस्त्याचे दर्शन घेतले.
हळव्या मनाच्या अविच्या डोळ्यात अश्रू थांबत नव्हते, सतत गालावर ओघळत होते.
गाडी वृद्धाश्रमच्या दिशेने चालत होती, अविच्या मनातला संघर्ष तीव्र होत होता !
जगण्याची कला ज्या गुरूंनी शिकवली होती त्याला, त्यांना तो अखेरचा श्वास कुठे घ्यावा हे शिकवायला निघाला होता !!
त्याच्या माथी आज भयंकर संकट धर्मयुध्दाच्या रूपाने उभे होते ! कोणत्याही परिस्थितीत अपयश त्याच्याच पदरी पडणार होते !!
अत्यंत रहदारीचा रस्ता असल्याने त्याची नजर फक्त समोर होती, दुरवर एक रसवंती दिसली.
रसवंतीवर थांबून मन मोकळे करावे असा विचार त्याच्या मनात आला. सर्व आईला सांगून मोकळे व्हावे, आई जे म्हणेल त्याला सामोरे जावे असा विचार त्याने केला ! गाडी थांबली !
वेड्यावाकड्या लाकडावर उभ्या केलेल्या चार पत्राच्या शेडमध्ये एक चरक उभे केले होते. चरकाच्या वर विठ्ठलाचा फोटो अन त्याच्या शेजारी एका तरु
Tuesday, May 2, 2017
अपने ही शिष्य को नहीं हरा पाए थे परशुराम, ये हैं 11 रोचक बातें
अपने ही शिष्य को नहीं हरा पाए थे परशुराम, ये हैं 11 रोचक बातें
Dainikbhaskar.com 28 Apr.2017 1:00
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 29 अप्रैल, शनिवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम का जन्म हुआ था। आज हम आपको भगवान परशुराम से संबंधित कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
भीष्म को नहीं कर सके पराजित
महाभारत के अनुसार, भीष्म परशुराम के ही शिष्य थे। एक बार भीष्म काशीराज की बेटियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह राजा शाल्व से प्रेम करती है तब भीष्म ने उसे छोड़ दिया, लेकिन शाल्व ने अंबा को अस्वीकार कर दिया।
जब अंबा ने यह बात परशुराम को बताई तो उन्होंने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा। भीष्म के ऐसा न करने पर परशुराम और उनके बीच भीषण युद्ध हुआ। अंत में पितरों की बात मानकर परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।
भगवान परशुराम से जुड़ी अन्य रोचक बातें जानने के लिए आगे की स्लाइड्स पर क्लिक करें-
तस्वीरों का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
ऐसे हुआ परशुराम का जन्म
महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। एक बार महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि इसमें से एक विशेष फल तुम खा लेना और दूसरा तुम्हारी माता को खिला देना। भूल से दोनों के फल बदल गए। जब महर्षि भृगु को यह बात पता चली तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि- तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह व्यवहार करेगा।
तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से कहा कि- मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद सत्यवती ने जमदग्नि मुनि को जन्म दिया। इनका व्यवहार ऋषियों के समान था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्नि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। परशुराम का स्वभाव क्षत्रिय के समान था।
नहीं हुआ था श्रीराम से कोई विवाद
श्रीरामचरित मानस के अनुसार, श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। धनुष टूटने की आवाज सुनकर परशुराम भी वहां आ गए। शिव का धनुष टूटा हुआ देखकर वे बहुत गुस्सा हुए और वहां उनका श्रीराम व लक्ष्मण से विवाद भी हुआ।
जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विवाह के बाद जब श्रीराम अयोध्या जा रहे थे। तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ा कर छोड़ दिया। यह देखकर परशुराम को भगवान श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया और वे वहां से चले गए।
क्यों किया माता का वध?
एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा चित्ररथ भी वहां स्नान कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार आ गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। रेणुका को देखकर मुनि जमदग्नि ने उनके मन की बात जान ली और अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु किसी ने ऐसा नहीं किया।
तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे ही अपने फरसे से माता का सिर काट डाला। ये देखकर मुनि जमदग्नि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं।
क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध?
एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमग्नि मुनि के आश्रम के पास से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।
इसलिए किया क्षत्रियों का संहार
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्नि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहिन कर दिया।
परशुराम का कर्ण को श्राप
कर्ण परशुराम का ही शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक ब्राह्मण पुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे। उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु नींद से उठ न जाएं, ये सोचकर कर्ण दर्द सहता रहा।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण ब्राह्मण पुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि- मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे। इस प्रकार परशुरामजी के श्राप के कारण ही कर्ण की मृत्यु हुई।
राम से कैसे बने परशुराम?
बचपन में परशुराम को उनके माता-पिता राम कहकर बुलाते थे। जब राम बड़े हुए तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने लगे। उस समय असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा।
राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।
फरसे से काट दिया था श्रीगणेश का एक दांत
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान ध्यान में थे। तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया। वह फरसा स्वयं भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। श्रीगणेश उस फरसे का वार खाली नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया, जिसके कारण उनका एक दांत टूट गया। तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।
अमर हैं परशुराम
हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। इनमें से एक भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम भी हैं-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।
ये थे परशुराम के भाइयों के नाम
ऋषि जमदग्रि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु था।
किया था श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन
महाभारत के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।