भगवान शिव को श्रावण माह में दूध चढ़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है.
वैसे 'रुद्राभिषेक' और अन्य अवसरों पर भी महादेव को दूध चढ़ाया जाता है.
कुछ लोग एेसे हैं जिनको पता नहीं शिवजी को दूध क्यों चढ़ाया जाता है!
कभी शास्त्रों का अध्ययन कीए हीं नहीं.
लेकिन आमिर खान कहता है दूध चढ़ाना गलत है तो मान गए.
भारत के रिषि कहते हैं दूध चढ़ाओ इनको विश्वास नहीं,
आमिर खान कहता है मत चढ़ाओ,पाखंड है.
तो मान गए पाखंड है.
एेसे लोग आमिर खान के फैन हैं और वो तर्क देता हैं कि शिवजी को दूध चढ़ाकर नष्ट करने से अच्छा है कि वो दूध किसी भूखे को पिलाया जाए.
आमिर खान या एेसे दुस्साहसी बॉलीवुड के कितने लोगों ने भूखे को दूध पिलाकर दूध का सदुपयोग किया ये तो मुझे पता नहीं.
यहीं आमिर खान तीन-तलाक और बुर्का की प्रथा पर चुप क्यों हैं ये समस्त भारत जानता है.
और सीधी भाषा में कहूं तो ये समझदारी कभी बकरीद पर भी दिखला देते आमिर खान-
"बकरीद पर गाय-बकरों को मारकर उनका खून बहाने से अच्छा है कि ये गाय-बकरे किसी निर्धन किसान को दान कर दें ताकि पशुपालन से किसान को खेती में थोड़ी मदद मिल जाए."
हम बॉलीवुड के असभ्य कलाकारों की बातों पर बहुत शीघ्र हीं विश्वास कर लेते हैं.
ये लोग यदि इतने हीं ज्ञानी होते तो नंगे-अधनंगे होकर फिल्मों में नाचकर पैसे कमाने की आवश्यकता क्या थी!
इनको छोड़िए,
हम आज बात करेंगे शिवजी को दूध चढ़ाने की पौराणिक और वैज्ञानिक कारण की.
पौराणिक कारण-
सृष्टि की रचना होने के बाद जब देवताओं और असुरों में निरंतर भयंकर युद्ध होने लगे तब असुरों की विशालकाय सेना और बाहुबल देवताओं पर भारी पड़ने लगा.
देवताओं को अत्यधिक होनेवाली हानि से चिंतित देवराज इंद्र समस्त देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे और वृतांत सुनाया.
ब्रह्माजी बोले आपलोग जगतपालक श्रीहरि विष्णु के पास जाईए,वहीं आपकी चिंता दूर करेंगे.
सभी देव विष्णुजी के पास पहुंचे और अपना वृतांत पुनः सुनाया.
विष्णुजी ने समुद्र मंथन और उससे प्राप्त होने वाले अमृत तत्व का रहस्य समझाया.
समुद्र मंथन हुआ तो सर्वप्रथम वो "हलाहल विष" प्राप्त हुआ.
क्या करें इस विष का पृथ्वी पर पड़े तो समस्त पृथ्वी नष्ट होगी,
आकाश में फेकें तो अंतरिक्ष नष्ट और जल में फेकने पर जल संसाधन हीं हलाहल बन जाएगा.
महादेव शिव ने उस हलाहल को पीकर अपने कंठ में स्थिर कर लिया और विष के कारण उनका कंठ नीले रंग का हो गया.
इसीलिए महादेव को 'नीलकंठ' नाम भी मिला.
विष की उष्णता को नियंत्रित रखने के लिए शीतलता की आवश्यकता होती है और गाय के दूध से शीतल क्या हो सकता है?
जिन्होने विष को कंठ में धारण कर लिया हो उनको विष की उष्णता क्या हानि पहुंचा सकती? असंभव,बिल्कुल नहीं.
लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हम उनके प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को बताने के लिए दूध का अभिषेक करते हैं.
शिवजी को दूध की आवश्यकता नहीं,हमे शिव की आवश्यकता है और इसीलिए अभिषेक होता है.
वैज्ञानिक कारण-
यजुर्वेद,आधुनिक आयुर्वेद और वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर तीन तत्वों की अधिकता से रोगी हो जाता है-वात,पित्त और कफ.
पशुओं द्वारा खाई जाने वाली घासों में वात तत्व पाया जाता है जो श्रावण माह में अधिकतम होता है.
इसीलिए आयुर्वेद श्रावण माह में दूध के सेवन को वर्जित बतलाता है.
भारत के महर्षियों नें वैज्ञनिक शोधों और साक्ष्यों के उपरांत शिवजी का दूध से अभिषेक करने की विशेषतः श्रवाण माह में परंपरा बनाई.
भूखे को दूध भी पिलाओ,खाना भी खिलाओ ये अलग मुद्दा है.
शिवजी का अभिषेक अलग मुद्दा है.
और आज ये निरक्षर निर्बुद्धि लोग प्रश्न उठाते हैं?
आप यदि इस रहस्य को समझ गए तो निश्चित रुप से शेयर कीजिएगा.
- डॉ0 विजय शंकर मिश्र
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